ताइवान सरकार अपना रिकॉर्ड देखकर यह खुलासा कर चुकी
है कि 18 अगस्त 1945
को ताइवान के ऊपर कोई विमान हादसा नहीं हुआ था.
पर 18 अगस्त 1945 के बाद नेता जी कभी नहीं देखे गए..........................................................
पर 18 अगस्त 1945 के बाद नेता जी कभी नहीं देखे गए..........................................................
नेताजी सुभाषचंद्र बोस एक सभा को
संबोधित
कर रहे थे। अचानक मंच पर चढ़ने का प्रयास
करती हुई एक स्त्री पर उनकी नजर पड़ी। वह
बिल्कुल फटेहाल थी। आजाद हिंद फौज के
अधिकारी भी अचरज में थे। सभी के भीतर
उत्सुकता थी कि आखिर यह चाहती क्या है?
तभी उस स्त्री ने अपनी मैली-
कुचैली साड़ी की खूंट में बंधे तीन रुपये निकाले
और नेताजी के पांवों के पास रख दिए।
नेताजी हैरान होकर उसे देख रहे थे। फिर उस
महिला ने हाथ जोड़कर कहा, 'नेताजी, इसे
स्वीकार कर लीजिए। आपने राष्ट्र देवता के
लिए सर्वस्व दान करने के लिए कहा है।
मेरा यही सर्वस्व है। इसके अलावा मेरे पास कुछ
नहीं।' सभा में उपस्थित जनसमुदाय भी चकित
था। नेताजी मौन रहे। कुछ देर बाद वह औरत
कुछ निराश सी बोली, 'क्या आप मुझ गरीब के
इस तुच्छ से दान को स्वीकार करेंगे? क्या भारत
मां की सेवा करने का गरीबों को अधिकार
नहीं है?' इतना कहकर वह नेताजी के पैरों पर गिर
गई।
नेताजी की आंखों में आंसू आ गए। बिना कुछ कहे
उन्होंने रुपये उठा लिए। उस
स्त्री की खुशी का ठिकाना न रहा। वह उन्हें
प्रणाम कर चली गई। उसके जाने के बाद पास
खडे़ एक अधिकारी ने पूछा, 'नेताजी, उस गरीब
महिला से तीन रुपये लेते हुए आप की आंखों में
आंसू क्यों आ गए थे?' नेताजी ने कहा, 'मैं
सचमुच बहुत असमंजस में पड़ गया था। उस गरीब
महिला के पास कुछ भी नहीं होगा। यदि मैं इन्हें
भी ले लूं तो इसका सब कुछ छिन जाएगा। और
यदि नहीं लूं तो इसकी भावनाएं आहत होंगी। देश
की स्वाधीनता के लिए यह अपना सब कुछ देने
आई है। इसे इंकार करने पर पता नहीं, वह
क्या क्या सोचती। हो सकता है, वह यही सोचने
लगती कि मैं केवल अमीरों का ही सहयोग
स्वीकार करता हूं। यही सब सोच-विचार करके
मैंने यह महादान स्वीकार कर लिया।'
कर रहे थे। अचानक मंच पर चढ़ने का प्रयास
करती हुई एक स्त्री पर उनकी नजर पड़ी। वह
बिल्कुल फटेहाल थी। आजाद हिंद फौज के
अधिकारी भी अचरज में थे। सभी के भीतर
उत्सुकता थी कि आखिर यह चाहती क्या है?
तभी उस स्त्री ने अपनी मैली-
कुचैली साड़ी की खूंट में बंधे तीन रुपये निकाले
और नेताजी के पांवों के पास रख दिए।
नेताजी हैरान होकर उसे देख रहे थे। फिर उस
महिला ने हाथ जोड़कर कहा, 'नेताजी, इसे
स्वीकार कर लीजिए। आपने राष्ट्र देवता के
लिए सर्वस्व दान करने के लिए कहा है।
मेरा यही सर्वस्व है। इसके अलावा मेरे पास कुछ
नहीं।' सभा में उपस्थित जनसमुदाय भी चकित
था। नेताजी मौन रहे। कुछ देर बाद वह औरत
कुछ निराश सी बोली, 'क्या आप मुझ गरीब के
इस तुच्छ से दान को स्वीकार करेंगे? क्या भारत
मां की सेवा करने का गरीबों को अधिकार
नहीं है?' इतना कहकर वह नेताजी के पैरों पर गिर
गई।
नेताजी की आंखों में आंसू आ गए। बिना कुछ कहे
उन्होंने रुपये उठा लिए। उस
स्त्री की खुशी का ठिकाना न रहा। वह उन्हें
प्रणाम कर चली गई। उसके जाने के बाद पास
खडे़ एक अधिकारी ने पूछा, 'नेताजी, उस गरीब
महिला से तीन रुपये लेते हुए आप की आंखों में
आंसू क्यों आ गए थे?' नेताजी ने कहा, 'मैं
सचमुच बहुत असमंजस में पड़ गया था। उस गरीब
महिला के पास कुछ भी नहीं होगा। यदि मैं इन्हें
भी ले लूं तो इसका सब कुछ छिन जाएगा। और
यदि नहीं लूं तो इसकी भावनाएं आहत होंगी। देश
की स्वाधीनता के लिए यह अपना सब कुछ देने
आई है। इसे इंकार करने पर पता नहीं, वह
क्या क्या सोचती। हो सकता है, वह यही सोचने
लगती कि मैं केवल अमीरों का ही सहयोग
स्वीकार करता हूं। यही सब सोच-विचार करके
मैंने यह महादान स्वीकार कर लिया।'
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